• डॉ. चन्दा मोदी विभागाध्यक्ष आनन्द विहार महाविद्यालय
  • 13 Mar 2025

मूकमाटी का 38 वाँ स्वर्णिम समापन समारोह

प्रकृति की हरियाली और आत्मा् की खुशहाली से आपूरित 150 करोड़ वर्षो से अधिक प्राचीन विन्या्चल की समुन्नत शिखर पर स्थित जैन सिद्धक्षेत्र नैनागिरि में आप सबकी अनंत आस्था है। इस आस्था का न आदि है और न अंत। प्राचीनतम शाश्वतत षष्ठम निर्वाण सिद्धक्षेत्र पर आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा वर्ष 1987 के अवसर पर जैन संस्थान परिसर में सर्वप्रथम विशाल पाण्डुक शिला का निर्माण किया गया । इसी के समीप पावन समापन स्थरल पर 11 फरवरी, 1987 को आचार्य विद्यासागर जी ने मूकमाटी का मधुर महागान पूर्वक समापन किया। इसके पूर्व 8, 9 तथा 10 फरवरी, 1987 को संस्थान परिसर से थोड़ी दूरी पर स्थित, वरदत्तादि सिद्धों तथा अर्हंत पार्श्वनाथ की पगतलियों से पवित्र सिद्धशिला, बज्रशिला और वरदत्ति प्रयाग के पावनतम स्थालों पर मूकमाटी की सुप्रसिद्ध पंक्तियों का गुरुदेव ने अपने पावन कण्ठय से मधुर गान किया। इस मधुर गान की गूंज इन समापन स्थलों पर अब भी गूंजती रहती है तथा जन-जन को प्रभावित करते हुए प्रसन्न करती रहती है।

2. गुरुदेव ने 1984 में जबलपुर में मूकमाटी लिखना शुरु की और इसका समापन 11 फरवरी, 1987 को जैन तीर्थ नैनागिरि में किया। 658 दिनों में यह कृति पूर्ण हुई। आचार्य श्री इन दिनों में से अधिकांश दिन नैनागिरि में ही विराजमान रहें और पार्श्वीप्रभु से सतत प्रेरणा प्राप्त कर रचनात्म क लेखन करते रहे।

3. आचार्य विद्यासागर ने वरदत्ता्दि सिद्धों तथा अर्हंत पार्श्ववनाथ की पावन रज से पवित्र नैनागिरि के रजकणों को अपनी तपस्या् से ऊर्जस्वित कर पूरी दुनिया में विकीर्ण किया। नैनागिरि के माटी पुत्रों को अनुपम साधना की सीख देकर सिद्धत्वन के पथ पर अग्रसर किया। यह सराहनीय और अनुकरणीय है कि उनके तपोनिष्ठर मनीषी साधक गत शतािब्दि में नैनागिरि में हुई आध्याउत्मिक क्रांति की अमर कहानियाँ सुना-सुनाकर नैनागिरि की कीर्ति को पूरी दुनिया में फैला रहे हैं। वहाँ जन्मेंा प्रशासक और न्यानयाधीश की आध्या त्मिक निष्ठारओं तथा सामाजिक अवदानों के उदाहरण जन-जन को सुनाकर उनमें नैतिक मूल्यय संस्थामपित कर रहे है। युवक-युवतियों को उनके सद्गुणों को आत्ममसात कर अपना चतुर्मुखी विकास करने के लिए सतत प्रेरित कर रहे है।

4. सेमरा पठारी नदी की मूक बज्रशिला, मूक सिद्धशिला तथा मूक वरदत्तट प्रयाग पर बैठकर विद्यासागर जी के मधुरकण्ठ सेइस मधुरगान को सुनने के सुरेश जी तथा न्याैयमूर्ति विमला जी प्रभृति कुछ विशेष भाग्याशाली लोग अपरिमित पुण्य‍शाली श्रोता है। हम इन अवसरों पर समुपस्थित रहे सभी सुधी श्रोताओं की ओर से मूकमाटी के आद्य उद्गाता विद्यासागर जी को शत-शत प्रणाम करते है। संस्था‍न परिवार के सभी मानद सदस्यों को साधुवाद प्रदान करते है जो समापन तिथि से ही नियमित रूप से प्रत्येतक वर्ष में विभिन्नत अवसरों पर ग्रामीण स्ततर के छोटे स्वोरूप में ही सही, मूकमाटी का जयगान निष्ठासपूर्वक करते रहे हैं।

5. मूकमाटी के जन्मव के 38 वर्ष पूरे होने पर 7, 8, 9, 10 फरवरी, 2025 को नैनागिरि में आयोजित 38 वें समापन समारोह में पं. अशोक जी ने मूकमाटी के चुने हुए अंशो का सस्वेर पाठ किया। पं. कंछेदीलाल जी ने मूकमाटी के लेखन काल के ऐतिहासिक तथ्यर प्रस्तुंत किए। प्राचार्य सुमति प्रकाश के नेतृत्वु में सिंघई सतीशचन्द्रं केशरदेवी जैन उच्च तर माध्युमिक विद्यालय के पूर्व तथा वर्तमान छात्र-छात्राओं ने मूकमाटी के चयनित अंश मधुर संगीत के साथ सुनाएं। इसका गुणगान, की‍र्तन, संकीर्तन और अनुकीर्तन किया। मूकमाटी के वादनपूर्वक गायन ने विद्यासागर जी के उद्गान कोअपनी ध्व्नियों से गुंजायमान कर दिया ।किशोर बच्चोंओ की सहज और सरल वाणी में प्रस्तुुत मूकमाटी के सुगेय - धार्मिक तथा आध्यांत्मिक तत्वों ने श्रोताओं की 38 वर्ष पुरानी स्मृधतियों को गुदगुदाकर ताजा कर दिया।उपस्थित महानुभावों ने इस महत्वमपूर्ण महाकाव्यम की अत्यृधिक सराहना कर बच्चोंओ को पारितोषिक प्रदान किए। इस अवसर पर हमें मूकमाटी पर आधारित सर्वोत्कृिष्टह ऐनीमेशन फिल्‍म देखने का अवसर प्राप्तन हुआ।

7. आचार्य विद्यासागर जी की कालजयी कृति मूकमाटी 50 विश्व्विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित है। मूकमाटी में देश की तत्काटलीन विषम परिस्थितियों का वर्णन हमारे ज्ञान का सतत संवर्द्धन करता है। इसमें वर्णित सूक्तियों की चर्चा विद्वानों द्वारा अपने आलेखों और प्रवचनों में सर्वत्र की जाती है। इसके सर्वोत्तसम संस्कृनत अनुवाद मूक मृत्तिकामहाकाव्य के लोकार्पण समारोह के अवसर पर आचार्य समयसागर जी ने बहुत अच्छी सीख दी है कि मूकमाटी क्या कह रही है?इसको समझो । मूकमाटी को आत्मैसात करने से ही मूकमाटी की सार्थकता सिद्ध होगी।मुनिवर अभयसागर जी ने नैनागिरि में मूकमाटी के लेखन,गायन, प्रकाशन का जीवंत चित्रण प्रस्तुजत किया। अभय वाणी ने मूकमाटी के विश्वय की आठ भाषाओं में सुन्दतर अनुवादतथा मूकमाटी के प्रतिदेश के सुप्रसिद्ध विद्वानों के सम्माषनजनक अनुपम शब्दोंअ का प्रभावी ढंग से उद्घोष किया। संस्काकर सागर फरवरी, 2025 तथा जैन संदेश 12 फरवरी, 2025 में प्रकाशित डॉ. सुनील जैन ‘संचय’, ललितपुर की इस समारोह की विस्तृ त रिपोर्ट सतत पठनीय और संग्रहणीय है।

8. यह सराहनीय है कि मूकमाटी का मूकमृत्तिका महाकाव्यं के शीर्षक से संस्कृ त पद्यानुवाद शिमला के सुप्रसिद्ध विद्वान श्री अभिराज राजेन्द्र मिश्र, कुलपति, संपूर्णानन्दप विश्वनविद्यालय, वाराणसी द्वारा किया गया। मूकमाटी में कन्न्ड़ मातृभाषी विद्याधर तथाहिन्दीि, संस्कृवतप्राकृत भाषाओं के प्रयागराज आचार्य विद्यासागर जी का दुर्लभ चारित्र, अगाध वैदुष्यव और उत्कृतष्टृ काव्यन प्रतिभा सर्वत्र प्रगट होती है। मूकमाटी में अथर्ववेद की भांति पृथ्वी का तथा महाकवि प्रसाद की कामायनी की भांति भारतीय दर्शन का सुन्दंर वर्णन किया गया है।

9. देश के कर्मठ और सुप्रसिद्ध युवा विद्वान तथा मूक मृत्तिका के संपादक डॉ. सोनल जैन को नैनागिरि तीर्थ के यशस्वीय एवं सुप्रसिद्ध अध्यकक्षश्री सुरेश जैन ने 18 फरवरी, 2025 को भोपाल में अपने घर आत्मींयता पूर्वक आमंत्रित किया । उनका आतिथ्या किया और उनके इस असाधारण संपादन कार्य के लिए साधुवाद प्रदान किया । यह उल्लेिखनीय है कि सोनल जी ने शीघ्र ही नैनागिरि पहुँचकर मूकमाटी के समापन स्थालों को देखने तथा आद्य उद्गानों की गूंज को स्व यं सुनने की अभिलाषा और जिज्ञासा प्रगट की है।

10. यह सराहनीय है कि सुरेश जी के द्वारा संस्थादन परिसर में मूकमाटी के समापन स्थकल तथा महागान स्थ लों -सिद्धशिला, बज्रशिला और वरदत्तद प्रयाग - पर निम्नांएकित मूकमाटी पट्टिकाएं लगाई गईं हैं। निश्चित ही इस प्रकार की संदेश पट्टिकाएं जन-जन को प्रभावित और आकर्षित करेंगी।

11. अंत में हम अपने पाठकों का ध्या न इस महत्वापूर्ण तथ्या की ओर आकृष्टे करना चाहते है कि तेरह सौ वर्ष पूर्व देशी पाषाण से नैनागिरि में निर्मित तथा 51 वें मंदिर में विराजमान नेमिनाथ, आदिनाथऔर अजितनाथतथा 37 वें मंदिर में विराजमान युगल पार्श्वानाथ की पाँच पंचतीर्थी प्राचीनतम प्रतिमाओं केसर्वसिद्धि प्रदायक भव्यातम महामस्ताकाभिषेकका विशाल आयोजन, 140 वर्षो से निरंतर भर रहे नैनागिरि मेला, रथोत्सतव तथा जल विहार के ऐतिहासिक अवसर पर दिसंबर, 2024 के मध्य में संपन्न हुआ। सहभागियों ने अनुपम आनंद प्राप्तत किया। आप अपनी सुविधानुसार नैनागिरि पधारें और इन प्राचीनतम मूर्तियों का अभिषेक करें तथा अपार आनन्दग और अतिशय पुण्यं प्राप्तप करें।