भेदविज्ञानी विद्यासागर और उनकी मूकमाटी
मुनिवर प्रमाणसागर जी ने इन्दौर से प्रकाशित संस्कार सागर के फरवरी, 2025 के अंक, जिसमें प्रधान संपादक ब्र. श्री जिनेश मलैया द्वारा प्रकाशित - भेंट : एक भेदविज्ञानी से, जो श्री सुरेश जैन द्वारा 30 अक्टूबर, 1978 को संयोजित की गई थी, का तथा इसी पत्रिका के मार्च, 2025 के अंक में प्रकाशित डॉ. चंदा मोदी, भोपाल का आलेख जैन सिद्धक्षेत्रनैनागिरि: मूकमाटी का 38 वाँस्वर्णिम समापन समारोह का अवलोकन कर अपनी अपार प्रसन्नता प्रगट की। उन्होंने इस अवसर पर विविध चैनलों पर 5 मार्च, 2025 को अपना मंगल उद्बबोद्धन देते हुए नैनागिरि तीर्थ के अध्यक्ष श्री सुरेश जैन को निम्नांकित शब्दों में प्रभावी आशीर्वाद प्रदान किया-
‘’मुझे बहुत प्रसन्नता है कि गुरुदेव की साधना स्थली और तपोभूमि नैनागिरि में उनके अनेक चातुर्मास और प्रवास हुए हैं। वहां अनेक समाधियाँ भी हुई हैं। इन सब को स्थायित्वं प्रदान करने के लिए सुरेश जी (आई.ए.एस.) ने सराहनीय और अनुकरणीय कार्य किया है। अपने आप में समाज के वरिष्ठ कर्मठ,कर्तव्यनिष्ठ और लगनशील समाजसेवी कार्यकर्ता है। उन्होंने जो सोच रखी है, वह बहुत दूरदर्शी है। उनकी इस दूरदर्शी सोच के लिए मैं उन्हें बहुत-बहुत आशीर्वाद और साधुवाद देता हूँ। आचार्य श्री की इस कृति और उनकी स्मृति को स्थाँयी और चिरजीवी बनाने के उनके सभी प्रयास स्तुत्य् है।‘’
यहाँ यह उल्ले्खनीय है कि गुणायतनप्रणेता तथा शंका समाधान के विश्वय प्रसिद्ध विशेषज्ञ प्रमाणसागर जी ने युवक नवीन कुमार के रुप में 20 जुलाई, 1967 को हजारीबाग में जन्म लिया। उन्होंने दिनांक 4.3.1984 को राजनांदगांव में ब्रम्हचारी दीक्षा ली। दिनांक 8.11.85 को जैन तीर्थ आहार जी में क्षुल्लक दीक्षा तथा दिनांक 10.7.1987 को थूबौन जी में ऐलक दीक्षा गृहण की। उनकी दिनांक 31.3.1988 को सोनागिरि में मुनि दीक्षा हुई। वे आचार्य विद्यासागर जी के साथ दिनांक 8.11.85 से फरवरी, 1987 तक विभिन्न प्रवासों में प्राचीनतम जैन तीर्थ नैनागिरि में रहे है। नैनागिरि तीर्थ के चतुर्मुखी विकास में उनकी सतत रुचि को शत-शत प्रणाम।