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Breaking News - 11 वर्ष पूर्व निर्मित जल मंदिर मानस्तम्भ का मस्तकाभिषेक दिनांक 14 मार्च 2025, शुक्रवार, समय प्रातः 9:00 बजे से

जैन सिद्धक्षेत्र नैनागिरि (रेशंदीगिरि) जी

नैनागिरि (रेशंदीगिरि ) : यह बुन्देलखण्ड का प्राचीनतम तीर्थ है। यहाँ दर्शनाथियों के लिए सभी आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध है। इस तीर्थ पर स्थित सिद्ध शिला से भगवान नेमिनाथ के काल में आचार्य वरदत्तादि पांच मुनिवर मोक्ष पधारें थे। तीन हजार वर्ष पूर्व इस तीर्थ पर भगवान पार्श्वनाथ का समवसरण आयोजित किया गया था। पर्वत पर 38, तलहटी में 16 एवं महावीर सरोवर में 2 विशाल मंदिर है। जल मंदिर एवं...
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जल मंदिर

एक विशाल सरोवर के मध्य में एक भव्य जल मंदिर बना हुआ है। मंदिर तक जाने के लिये पुल है। सरोवर के मध्य चबूतरे पर एक पक्का कुआँ बना हुआ है। मंदिर के मूलनायक भगवान महावीर की श्वेत....
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गजराज बज्रघोष

नैनागिरि मे स्थित अपनी तपोभूमि में भगवान पार्श्वनाथ द्वितीय भवधारी में गजराज बज्रघोष ने विभिन्न व्रतो का पालन करते हुए भीषणतम तपश्चरण किया। नैनागिरि के गहन एवं....
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नैनागिरि तीर्थ वंदना

यहाँ 38 जिनालय पहाड़ी के ऊपर हैं और 16 जिनालय मैदान में सरोवर के निकट हैं। इस प्रकार यहाँ जिनालयों की संख्या 56 है। एक मंदिर सरोवर के मध्य में पावापुरी के समान बना हुआ है। इसे....
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पार्श्वनाथ चौवीसी मंदिर

पार्श्वनाथ मंदिर-भगवान पार्श्वनाथ की बादामी वर्ण की यह खड्गासन प्रतिमा 13 फीट है। इस प्रतिमा के सिर पर सर्प-फणावली नहीं है। जो पार्श्वनाथ तीर्थंकर का लांछन है। सिर के....
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समवशरण मंदिर

सरोवर एवं पहाड़ी के संगम पर 10,000 वर्ग फीट क्षेत्र में विशाल समवसरण मंदिर है। इसकी पंचकल्याणक सन् १९८७ में आयोजित किया गया था....
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पर्वत के प्राचीन मंदिर

पर्वत पर पार्श्वनाथ मंदिर, नेमिनाथ मंदिर, चन्द्रप्रभ मंदिर, अजितनाथ मंदिर, आदिनाथ मंदिर, शांतिनाथ मंदिर, अभिनंदननाथ मंदिर है। मुनि सुव्रतनाथ के पांच प्राचीन....
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भगवान पार्श्वनाथ और उनकी समवसरण स्थली नैनागिरि

जैन संस्कृति के विभिन्न पौराणिक एवं ऐतिहासिक स्रोतों के आधार पर विद्वानों ने यह सुस्थापित किया है कि भगवान महावीर का निर्माण 527 ईसा पूर्व में हुआ है। इच्छवाकु वंशी भगवान पार्श्वनाथ का निर्माण 777 ईसा पूर्व हुआ है। अपने जीवन काल में पार्श्वनाथ को ईसा से 707 वर्ष पूर्व चैत्र कृष्ण चतुर्थी को केवलज्ञान प्राप्त हुआ। अर्हंत्य पद पाकर भगवान बन गए पार्श्वनाथ ने 70 वर्षों (ईसा पूर्व 707 से 777) तक विहार किया। अपने द्वितीय भव के जीव गजराज बज्रघोष के समाधिमरण और देवत्व प्राप्ति स्थल का स्मरण आते ही वे अपने अरिहंत जीवन के प्रथम वर्ष में ही अगहन शुक्ला एकादशी ईसा पूर्व 706 को नैनागिरी पहुंचे। नैनागिरी में उनका देवताओं द्वारा प्रथम समवसरण आयोजित किया गया।

मंदिर का यथार्थ अर्थ

" मंदिर का यथार्थ अर्थ संस्कृत के अनुसार शरण होता है | संसार के दुःखो से भयभीत प्राणियों के सहारे को 'शरण' कहते हैं |
अतः प्रतिदिन मंदिर जी आने का मतलब हैं - अपने आपको दुःखो से छुटकारा दिलाने का उपक्रम करना |"

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